STORYMIRROR

Mahesh Kumar

Abstract

4.3  

Mahesh Kumar

Abstract

नाप-तौल

नाप-तौल

1 min
241


देखा है वो वक़्त ज्ञानी, रुक जाती है जुबानी।

सिल जाते होंठ जहाँ, स्वयं नाप-तोल में।।


रूह से ये मन बोले, आंखों में ना आंखें डोले।

सुनने है शब्द सांझे, बेचैनी माहौल में।।


तेवर की तीव्र होली, अंगारो जैसी रंगोली।

घुल गई धुँआ भी तो, स्नेह के घोल में।।


अभिमानी गई जानी, सब मस्त दाना-पानी।

सीख मैंने सीख लई, प्यार के ही बोल में।।


स्वयं नाप-तोल में जी, स्वयं नाप-तोल में।

स्वयं नाप-तोल में जी, स्वयं नाप-तौल में।।

(मनहर घनाक्षरी)

 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract