घर की रानी
घर की रानी
जब जन्म हुआ माँ लक्ष्मी आई
फिर बड़ी हुई बाला कहलाई।।
आज सोचा है उसने गोर से
घर बंधा है त्याग की डोर से।
जग की सारी ही रीत पुगाई
लो बजने लगी घर में सहनाई।
बचपन का आँगन छोड़ के
कर्मो से दामन जोड़ के।
थी कदमों में जिसके सादगी
आँसू भाई के याद की।
मैं एक रोज कभी आ जाउंगी
ना सूनी रहेगी तेरी ये कलाई।
जब जन्म हुआ माँ लक्ष्मी आई
फिर बड़ी हुई बाला कहलाई।
ब्रह्मा से चल विष्णु तक आई
तब जाके माँ जननी कहलाई।
अब सास बनी हर आश की
वो हर मुश्किल को त्राष ती।
जीवन के अंतिम काल में
अनुभव संजोया पाल में।
फिर वक्त ने ऐसी शाम दी
सांसो की लीला थम दी।
वे चल दिये दुनिया छोड़ के
सब रिश्ते-नाते तोड़ के।
फिर मिट्टी में मिल मूर्त मिटाई
सूरत कभी ना हमें दिखाई
जब जन्म हुआ माँ लक्ष्मी आई
फिर बड़ी हुई बाला कहलाई।।