STORYMIRROR

shruti chowdhary

Abstract

3  

shruti chowdhary

Abstract

मुनासिब है

मुनासिब है

1 min
269

ये सफर कहाँ जा रहा है मगर 

गम के साये से गुजर कर 

मेरा मुस्कुराना मुनासिब है 

सितारे यूँ ही चमकते रहेंगे 

उनकी ओर कदम बढ़ाकर 

मेरा खो जाना मुनासिब है 

लहरें उलटी बहती है मगर 

बूंदो को हाथो में समेटकर 

मेरा प्यासा रहना मुनासिब है 

इन टेढ़े उबरे रास्तों में

काटों और पत्थरों पे चलकर 

मेरा गिरना मुनासिब है

जहाँ सिफारिशों की होती खनखन 

इन डिग्रियों को लेकर 

कुचलकर जलना मुनासिब है 

इस रोंदती भीड़ भाड़ में 

किसी की डूब गयी है नज़्म 

किसी का सूनापन हो गया बचपन 

इनका तड़पना मुनासिब है 

कोई पास रहके भी दूर है

दिल का टूटना मुनासिब है

कोई बिछड़ कर मिल गया 

कोई श्रद्धालु बन गया 

उनकी खुशियां लौटना मुनासिब है 

संसार के प्रति मन है कठोर 

दर्द. पीड़ा,रुदन ले रहा हिलोर 

धूमिल हो गयी इंसानियत 

लुप्त हो गई प्यार की विरासत 

दुखों और अनगिनत सवालों 

के बोझ को कम करना है अगर 

तुम्हारा पुनः जनम लेना मुनासिब है!!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract