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shruti chowdhary

Abstract

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shruti chowdhary

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मुनासिब है

मुनासिब है

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ये सफर कहाँ जा रहा है मगर 

गम के साये से गुजर कर 

मेरा मुस्कुराना मुनासिब है 

सितारे यूँ ही चमकते रहेंगे 

उनकी ओर कदम बढ़ाकर 

मेरा खो जाना मुनासिब है 

लहरें उलटी बहती है मगर 

बूंदो को हाथो में समेटकर 

मेरा प्यासा रहना मुनासिब है 

इन टेढ़े उबरे रास्तों में

काटों और पत्थरों पे चलकर 

मेरा गिरना मुनासिब है

जहाँ सिफारिशों की होती खनखन 

इन डिग्रियों को लेकर 

कुचलकर जलना मुनासिब है 

इस रोंदती भीड़ भाड़ में 

किसी की डूब गयी है नज़्म 

किसी का सूनापन हो गया बचपन 

इनका तड़पना मुनासिब है 

कोई पास रहके भी दूर है

दिल का टूटना मुनासिब है

कोई बिछड़ कर मिल गया 

कोई श्रद्धालु बन गया 

उनकी खुशियां लौटना मुनासिब है 

संसार के प्रति मन है कठोर 

दर्द. पीड़ा,रुदन ले रहा हिलोर 

धूमिल हो गयी इंसानियत 

लुप्त हो गई प्यार की विरासत 

दुखों और अनगिनत सवालों 

के बोझ को कम करना है अगर 

तुम्हारा पुनः जनम लेना मुनासिब है!!



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