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Deepika Guddi

Abstract

4.7  

Deepika Guddi

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क़ाश - तुम होते !

क़ाश - तुम होते !

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क़ाश में इतनी कशमकश क्यूँ है ?

ये क़ाश क्यूँ है -इसका ज़वाब तो नही 

फ़िर भी ये क़ाश ज़िंदगी है हमारी

क़ाश ही तो है जो हमारे अधूरे ख़्वाब 

को ख़्वाब में ही पूरा करती है 

ये क़ाश ही है जो भीड़ में भी अक़ेले 

और अक़ेले में भी पूर्ण होने का अहसास कराती है 

ये झूँठ का भँवर है या सच का सामना न पाने का बहना 

जो ख़ुद को ख़ुद से मिलने नही देता और ख़ुद को ख़ुद दूर होने भी नही देता ..!

क़ाश तुम होते प्रियवर !

इन सवालों को अपनी आग़ोश में बिठाकर सुलझा तो देते 

क़ाश तुम होते !!!


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