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Manu Sweta

Abstract

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Manu Sweta

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अच्छी नहीं लगती

अच्छी नहीं लगती

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इतनी खामोशी अब अच्छी नहीं लगती

माथे पर तेरे शिकन अच्छी नहीं  लगती

आ बैठ कर सुलझा ले इन उलझनों को

ज़िन्दगी तू उलझी हुई अच्छी नहीं  लगती।


हर चेहरा है कुछ बुझा- बुझा से यहाँ

हर चेहरे पे उदासी अच्छी नहीं  लगती

अपनों की खातिर नहीं  रहे ज़ज़्बात

अपनों से ये बेरुखी अच्छी नहीं लगती



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