मानवता
मानवता
मानवता का भाव ही, मानव तन की शान है।
जिसके बल पर विश्व में, मानव का गुणगान है।
अच्छाई को धार लें, जिनका जग में मान है ।
पालन करना नित्य ही, सबसे उत्तम ज्ञान है॥
अपनाएं नित सत्य को, जो जीवन का मूल्य है।
सुख देता इस लोक में, जो पारस के तुल्य है ।
दया भाव हो चित्त में, जो मानवता मूल है।
दया हीन नर विश्व में, चुभता जैसे शूल है॥
न्याय वृत्ति नहीं त्याग हो, लगे न कोई दाग हो।
दहे अन्याय जीव को, जैसे वन की आग हो।
हिंसा मानव छोड़ दे, वृत्ति अहिंसक राग हो।
प्रेमभाव के पुष्प से, सुरभित मानव भाग हो॥
