चपला
चपला
चली, चली रे एक नार चपल नवेली सी
अंधेरी रात में लगे भूतिया सहेली सी
कजरारे दृग ओंठ मदन,एक पहेली सी
हौले-हौले बलखाती चली है चपला सी
देख उसको समुद्र में जोर से तूफां उठा
मानो नजर से उसकीज्वार-भांटा कंपा
काली, घनी, रेशम जुल्फें मेघ को लजातीं
तन आभा, सेनापति, सैलानी बतातीं।