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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

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चपला

चपला

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चली, चली रे एक नार चपल नवेली सी 

अंधेरी रात में लगे भूतिया सहेली सी 


कजरारे दृग ओंठ मदन,एक पहेली सी

हौले-हौले बलखाती चली है चपला सी 


देख उसको समुद्र में जोर से तूफां उठा

मानो नजर से उसकीज्वार-भांटा कंपा 


काली, घनी, रेशम जुल्फें मेघ को लजातीं

तन आभा, सेनापति, सैलानी बतातीं।


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