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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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मूक प्राणी

मूक प्राणी

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धरती पर कितनी विविधताएं भरी हैं

सबको शांति से रहने की छूट भी मिली

इंसान अपने बुद्धि बल से बन बैठा श्रेष्ठ

अपने स्वार्थ के लिए खो दिया उसने विवेक


प्राणी धरती की शोभा हैं इनसे संतुलित जीवन होता है

कितने काम आते हैं प्राणी मूक सब सह जाते हैं

अपनी शक्ति का प्रदर्शन इंसान इनपर करता है

अपने स्वार्थ के लिए कितना अत्याचार करता है


प्रेम की भाषा सबसे उत्तम होती है

शब्दों की भी वहां ज़रूरत नहीं होती है

प्यार जितना दोगे इन मूक जीवों को

दुगना ये लौटाएंगे पहल करके देखो तो


उनको भी हक है स्वछंदता से रहने का

बिना डरे कहीं भी विचरण करने का

हिंसा शक्ति का प्राय कभी हो नहीं सकती

प्रेम की ताकत के है दुनिया झुकती।


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