अबला नहीं तुम नारी हो
अबला नहीं तुम नारी हो
कदम कदम पर अग्नि परीक्षा, कीमत तुम ही चुकती हो,
हर रूप में झलके प्यार तेरा , हर रिश्ता बखूबी निभाती हो।
आदि काल से पूजी जाती, अब तुम न बेचारी हो,
जग पालक, जग जननी हो, अबला नहीं तुम नारी हो,
संविधान से सशक्तमान, अब तुम आधुनिक नारी हो।
अतीत में तुम सती हुई, कई कुप्रथाओं में जकड़ी हो,
कभी देवदासी, बालविवाह में, दहेजप्रथा, कोख में मारी हो ।
पुरुष प्रधान समाज में, तुम अब एक चिंगारी हो,
सीमा, हिमालय खेल प्रांगण में, तुम पुरुषों पर भरी हो।
स्वर्णिम वर्तमान सदृश में, अबला नहीं तुम नारी हो,
संविधान से सशक्तमान, अब तुम आधुनिक नारी हो।
रूप मां के और भगिनी में, ममता का तुम स्रोत हो,
भार्या या सखी स्वरूप तुम, प्रेम सागर से ओत -प्रोत हो।
आदर्श रूप तुम माता सावित्री, रमा बाई या पन्ना धाय हो,
आत्म विश्वास अरुणिमा सिन्हा, लक्ष्मीबाई, जीजा माता हो ।
हर रूप तेरा अति सुन्दर सगुण, अबला नहीं तुम नारी हो,
संविधान से सशक्तमान, अब तुम आधुनिक नारी हो।
जग पालक नारायण की, तुम अपार शक्ति हो,
भेद नहीं है नर नारी में, तुम सिर्फ एक व्यक्ति हो।
मोहताज़ नहीं नारीत्व किसी का, स्वाभिमान की धनी हो,
आत्मजा स्वरूप तुम, हर घर की प्रियदर्शनी हो।
पहचान हो तुम अपनी स्वयं में, अबला नहीं तुम नारी हो,
संविधान से सशक्तमान, अब तुम आधुनिक नारी।