इतने राम कहाँ से लाओगे...॥
इतने राम कहाँ से लाओगे...॥
सदियों पहले संहारा मुझको,आज फिर तुम मुझ पर वार करोगे ,
चला निर्जीव पुतले पर तीर, आज फिर तुम मुझे लाचार करोगे ।
बना बुराई का प्रतीक मुझको , मेरी अच्छाईओं को झुठलाओगे,
100 फ़ीट लम्बा खड़ा चौराहे पर, आज फिर मुझे संहार करोगे।
मुझसे तो सिर्फ एक राम लड़ा था पर ,घर घर में एक रावण खड़ा है,
भारत में कई क्रूर रावणों का, व बुराइयों का तांडव चढ़ा है ।
बुरा नहीं था मैं इतना , हाँ नहीं था, प्रतिबद्ध अपनों के लिए लड़ा था,
मुझसे भी भयंकर पापी रावण , खुद राम बन के आज खड़ा है।
हे ! रघुवंश कुल के मानव तुम ,इतने राम कहाँ से लाओगे ,
बताओ हे राम ! आज तुम , इतने राम कहाँ से लाओगे …॥
रावण बड़ा जलाने की होड़ मची है, पर्यावरण बिगाड़ने की होड़ मची है,
मन का रावण कोई न मारे, पुतला कागज जलाने की दौड़ मची है ।
मैं तो था ज्ञानी, प्रतापी राजा, लंका बना सोने की, दशानन कहलाया था,
प्रतिशोध बहिन की खातिर, एक गलत कदम मेने उठाया था ।
हाँ, असुर ही सही , पर मर्यादा थी, सीता को हाथ नहीं लगाया था,
खुश थी प्रजा मेरी लंका में, सुख का चारो और नज़ारा था।
करा अग्नि परीक्षा सीता की ,क्यों उलटे तराज़ू के शुल्क को नाकारा था,
घाट घाट बैठे मक्कारी, भ्रष्टाचारी , आज इनको कैसे मारोगे।
हे ! मर्यादा पुरुषोत्तम राम तुम , इतने राम कहाँ से लाओगे ,
बताओ हे राम ! आज तुम , इतने राम कहाँ से लाओगे ॥