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तमन्ना जाग गयी

तमन्ना जाग गयी

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खुद ही की वहम से अपनी पहचान जलाने बैठा मैं

उसी चिता के राख के अँधेरे में डूबने चला था

और तभी आँख में एक रोशनी चुभी

परछाई मेरी अब गुमशुदा हो गयी थी

और... छम कर एक किरण मुझ पे पड़ी

इक ही धड़कन इक ही सांस बची थी ।

बस इंतज़ार अब जाने का ही था...

उसी पल मुझमें जीने की तमन्ना जाग गयी... |


मेरी ही बिछाये काँटों पे गुस्से से चलने बैठा मैं

नापाक मेरे करतूतों से नफरत ही पलने लगा था मैं...

और... अच्छाई मुझे किसीने सिखा दी

मेरी सोच भी न अब, मुझे सुनाई दे रही थी..

और... भोली सी वो हंसी कानो में पड़ी ।

इक ही सिसकी इक ही आंसू बची थी...

रो रो के मैं थक ही चूका था...

उसी पल मुझमें फिर हंसने की तमन्ना जाग गयी...


पूरी दुनिया दिखे जलती हुई, डर से कांपने बैठा मैं...

शोला वो बेदर्द मेरे रूह को निगलने लगा था...

और... हवा कही से ठंडी चली

न ज़मीं न आसमा... अब महसूस हो रही थी...

और... चेहरे पे बूँद बारिश की पड़ी

इक ही उम्मीद इक ही आस बची थी...

ज़िंदगी इनसे भी खाली होने ही लगी थी...

उसी पल मुझमें न हारने की तमन्ना जाग गयी...


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