लगाव
लगाव
बरसों साथ रही पर, अब नहीं
हालांकि मुझे अब भी
तुझसे मोहोब्बत है
तू हर वक़्त लगा रहता है
मोबाइल में
करता हैं मुझे, अनदेखा,
अनसुना, लगती हूँ मैं तुझे
अब बोझ सी, तू अपनी दुनिया में
मस्त है, देखती है तेरी
बीबी मुझे जलती आँखों से,
मेरी हर चीज़
हर खर्च पड़ता हैं उसे भारी
कुछ रोज़ पहले तक
बहाने ढूंढा करती थी
तेरे पास रुकने के
कुछ और लम्हें जीने के
और ज़हन में हर लम्हा
खटकती रहती थी ये बात
के मेरे न रहने पर, तेरा
ख्याल कौन रखेगा
तुझे कौन सम्हालेगा
पर अब मैं समझ
गई हूँ कि, मैं अकारण ही
रुकी रही थी तेरे पास
इतने दिनों तक
थोड़ा वक्त लगा मुझे
खुद को सम्हालने में
समझाने में की तू
अब बड़ा हो गया है
भले ही अब भी मेरे लिए
तू उतना ही छोटा है, तुझे अब भी
मैं सम्हालना चाहती थी,
पर बस,अब सब मेरे अख्तियार में
आ गया है, अब मैं जान गई हूं,
की तुझे मेरी कोई ज़रूरत नहीं
बेटे तुझे मुझसे कोई लगाव नहीं हैं
पर तू जहाँ भी रह, हमेशा खुश रह।