भूत बंगला
भूत बंगला
गांव का वो बंगला जो ना जाने कब से वीरान है
कहीं पर घास तो कहीं पर पांव के सूखे निशान है
खिड़कियां बंद है दरवाजों पर ताला है
दूर-दूर तक हर तरफ फैला जाला है
कभी-कभी चमगादड़ओं की आवाज आती है
जो पूरे गांव को डराती है
बहुत पूछने पर मां ने बताया था
साहूकार ने कुम्हार की बेटी को यहां जलाया था
अभी उसकी आत्मा यही मंडराती है
अभी भी उसके रोने की आवाज आती है
किसी मजबूर पर ये अत्याचार की कहानी है
उसकी व्यथा किसी ने ना जानी है
उसके पैरों की आहट से कान चौक जाते हैं
वो यहां रोज घूमती है लोग ये बताते हैं
जैसी करनी वैसी भरनी समय दोहराता है
अपनी पागल लड़की को ढूंढने साहूकार
आजकल हवेली के चक्कर लगाता है।