आँचल
आँचल
बंटे माँ बाप भी अब तो
यहाँ दिन और महीने में
कभी जो एक ही आँचल में
माँ सबको सुलाती थी
सुबह और शाम की भी
बंट गयी है रोटियाँ अब तो
कभी जो रहके खुद भूखे
माँ बच्चों को खिलाती थी
तड़प उठती थी माँ बच्चों को
गर तकलीफ़ होता था
हमारे वास्ते ख़ुशियों के
सब दर्द सह जाती थी
कई रातें वो जागे
जैसे हो बातें कुछ लम्हो की
छुपाके खुद के दर्द को
हमे हँसना सिखाती थी
कभी सोचा नहीं क्या
ख्वाहिशें मेरी भी अपनी है
हमेशा वास्ते बच्चों के
वो सपने सजाती थी
फटी साड़ी फटे जुते
नहीं माँ बाप ने बदले
हमारे वास्ते पढ़ने को माँ
सामान लाती थी
नहीं देखी कभी गर्मी
कभी सर्दी और बारिश को
हमारे सर पे रख आँचल
माँ खुद ही भींग जाती थी
है जागे रात भर सोचे
नहीं जो नींद क्या होती
माँ खुद गीले में सो करके
हमे सूखे में सुलाती थी
करे क़ुर्बान जो बच्चों पे
माँ यूं हँस करके जीवन को
माँ रोती थी मगर फिर
भी दुआएँ दे के जाती थी
तेरे एहसान को कोई
चुका सकता नहीं माँ है
तू वो है जो टूटे घर
को भी जन्नत बनाती
सलामत गर रहे आँचल जो
माँ का
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ है
शिवम् हँस करके माँ
अपनी सभी दर्द छुपाती थी !!