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Manju Rani

Tragedy Inspirational

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Manju Rani

Tragedy Inspirational

अतिथि देवो भव

अतिथि देवो भव

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दर्द ने दरवाजे पर

दस्तक दी, बोला

अब ना जाऊँगा ।

इस बार मेहमान

नहीं, हमसफर बन

दिल में बस जाऊँगा ।

रोज़-रोज़ दस्तक

देना ठीक नहीं ,

बेवफाई का काँटा

बन, हृदय भेद जाऊँगा ।

अतः प्रेम भी

अच्छा नहीं, इसमें

घृणा का बीज मिलाऊँगा ।

तेरे भरोसे की

कोई सीमा नहीं

उसे चूर-चूर कर जाऊँगा ।

तेरे समर्पण ने

ख्याल दिन-रात

किया, अपने को

भूल, सर्वस्व दिया,

उसे ठेस पहुँचाऊँगा ।

अब तू दिल

से कितना भी

निष्कासित कर

तेरे दिल से न जाऊँगा ।

फिर वफा

टकराई दर्द से,

माना बेवफाई

ने रंग दिखाया

पर जीतेगी वफा

यही अटल सत्य ।

देर-सवेर अतिथि

चला ही जाएगा

यह भी है सत्य ।

प्रेममय नयन नीर

धो देंगे सब

गिले-शिकवे ,

दबे पाँव दर्द

चला ही जाएगा ।

सुख हिंडोले पर

चढ़कर आएगा ।

प्रेम का एहसास

और निखार लाएगा ।

जीवन फिर

सुरम्य-रंगों

में रंग जाएगा ।

तभी तो कहते

'अतिथि देवो भव' ।


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