कहने को ही मर्द हुआ है
कहने को ही मर्द हुआ है
मौसम जब से सर्द हुआ है
हल्का हल्का दर्द हुआ है
दिल में रहकर ख़ंजर घोपा
अब तक जो हमदर्द हुआ है।।
कौन यहां किस पे है मरता
सब अपने मन की ही करता
दिखला कर झूठी हमदर्दी
अपना भी बेदर्द हुआ है।।
माना पैसा खूब कमाया
अपनेपन को जान न पाया
आंखों में हरियाली है पर
चेहरा देखो जर्द हुआ है ।।
नारी की इज़्ज़त से खेले
जगह बेजगह चुटकी ले ले
जो छल-बल से नारी को लूटे
वो कहने को ही मर्द हुआ है ।।
कभी कोख़ में मारी जाती
कभी दहेज़ में वो जलती है
देख के उठती अंधी आंधी
स्वरा स्वप्न सब गर्द हुआ है ।।