"कोई शिकायत नहीं"
"कोई शिकायत नहीं"
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एक जोड़ी बैल थे वो भी बेचने पड़े,
इस महामारी में बहुत बुरे दिन देखने पड़े।
काम की तलाश में रोज दर-दर जा रहा,
कभी मिल रहा कभी खाली हाथ ही लौट रहा।
ना जाने और कितना तड़पायेगी ये ज़िंदगी,
मजदूर की मजबूरी को कितना आजमाएगी।
फिर भी हिम्मत ना हारी है, सफर जारी है,
ए खुदा जो तूने ये ज़िन्दगी दी है बहुत प्यारी है।
तुझसे कोई शिकायत नहीं तू तो सबको देख रहा,
कौन कितना जलील हो रहा, और कौन कितना कर रहा।
दिन ये भी बीत जाएंगे, है सब्र खुद पर,
ए ज़िन्दगी तेरा बहुत अहसान है मुझपर।
रूखी-सूखी खाकर भी मैं ये वक्त गुज़ार लूंगा,
अपनी मर्यादा में रहकर मैं खुद से करार कर लूंगा।
एक जोड़ी बैल थे वो भी बेचने पड़े,
इस महामारी में बहुत बुरे दिन देखने पड़े।