तैरती लाशें
तैरती लाशें
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हमको किसने कहाँ फेंक दिया
क्या हमने इतना बड़ा गुनाह किया
पानी में फूले पड़े
जानवर पक्षी अपना भोजन बना रहे
क्या दो गज़ ज़मीन हमारे नसीब में नहीं थी
क्या हमारी इंसानों में गिनती नहीं थी
अब दोष इसमें किसका है
हम तो तैर रहे, हमारा दुख किसको है
मगर इतना बुरा अंज़ाम नहीं सोचा था
इतना तो जीते जी भी किसी ने नहीं नोंचा था
कोई कहीं से नोंच रहा कोई कहीं से
हम तैरते तैरते कहाँ चले गए कहीं से
कितनी हमारी शिनाख़्त होगी
कितनी हमारे लिए इबादत होगी
लावारिस कह,
बहुत सी आंखें देख रही होगी
इससे तो पहले ही मर जाते
जानवर पक्षी नोंचकर तो ना खाते
अब कहीं पड़े हैं कहीं सड़े हैं
कहीं गले हैं
एक तलाशा बने पड़े हैं
अब हम करें भी तो क्या
कहें भी तो क्या
हम हैं भी तो तैरती लाशें
हम हैं भी तो तैरती लाशें।