बलात्कार
बलात्कार
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तेरा कर्ज कैसे चुकाऊंगी मां
माफ़ कर देना तेरी उम्मीदों पर खड़ी नहीं उतर पाई मां
शायद यही गलती थी मेरी की मैं एक लड़की पैदा हुई
तभी शायद उन दरिंदों की नज़र मुझ पे आ गई मां
नहीं सोचा था मैंने की पापा को तकलीफ़ दूंगी
लेकिन उन दरिंदों ने सब खुशियां छीन ली मुझसे
उनका नोचना कैसे भूल जाऊँ मां
कैसे भूल जाऊँ वो सब में
दुनिया सो रही थी मां
जब में उस तकलीफ़ को झेल रही थी
मेरी चीख भी किसी को सुनाई नहीं दी मां
बहुत दर्द में थी मैं
कैसे बयान करूँ उस दर्द को अपने
कैसे पापा की आँखों में आँखें डालकर बोलूँ
की आप शर्मिंदा ना हो
एक पल में ही उन हैवानों ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया मां
मेरे शरीर के एक एक अंग को उन हैवानों ने नोचा मां
मेरी पीठ जैसे अंग को भी नहीं छोड़ा मां
समझ नहीं आया मुझे आज तक की
हम बेटियों
का कसूर क्या है मां
जाति को देखकर तो बलात्कार नहीं हुआ मेरा मां
हाँ जरूर उन दरिंदों के मन में मुझे लेकर
कुछ हलचल हुई होगी मां
तभी तो हर जाति की लड़कियों के साथ
ऐसा घिनौना अपराध होता होगा ना मां
जिंदा तो नहीं रह पाऊंगी मां मैं
इतनी दरिदंगी सहने के बाद मां
पर वादा तुम करो मुझसे मां
मेरे कातिलों के सजा जरूर दिलवाऊंगी मां
जाति पाती का भेद बीच में ना आने पाए ऐसा विश्वास दिलाओ मुझे मां
शायद तभी मैं इस विश्वास के साथ आराम से
इस दुनिया को छोड़कर जा पाऊंगी मां
बस आखिरी बात बोलनी है मां
निराश मत होना मेरे जाने से तुम
समझ लेना कि ज़िन्दगी की जंग हार के भी
एक सबक और सीख दे गई समाज को तुम्हारी बेटी
इन दरिंदों की हैवानियत का शिकार होकर शहीद हो गई मां
मैं शहीद हो गई।।