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Vishakha .

Tragedy Crime

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Vishakha .

Tragedy Crime

मै डर गई थी बाबा

मै डर गई थी बाबा

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मैं डर गई थी बाबा, यूं डर गई थी,

उस लम्हे में ज़िंदा होकर भी मर गई थी,

मैं डर गई थी।

अंग अंग को मेरे जब सना था उसने,

घिन्न से, नफरत से मैं भर गई थी,

मैं डर गई थी बाबा, यूं डर गई थी।


हम जैसा ही रंग - रूप, हम जैसा ही वो दिखता था,

अंजान थी ईमान उसका हर शरीर पर बिकता था।

सरल भाव, मीठी बोली, बाबा तुमसा वो लगता था,

पर अलग था, लड़की को देख शरीर उसका सुलगता था

उसके नापाक इरादों को मैं परख ना पाई थी,


मैं समझ ना पाई थी बाबा, बस समझ ना पाई थी।

ठंडे शरीर को मेरे जब जकड़ जकड़ कर पकड़ा था,

तुम्हारी परी को बाबा उसने, बोरी की तरह रगड़ा था।

तुमने संवारा था जिन्हें, उन ज़ुल्फो को उसने खीचा था,


अपने मैंले उन हाथों से यूं मेरा मुंह भीचा था

कुछ तो वो करता रहा, जो मुझे रास ना आया था,

घोर अपराध की तीखी बू, जब मेरे पास वो आया था।

फिर जो दर्द हुआ बाबा, मैं तड़प उठी करहाई थी,

ग्न बदन को खून से रंग कर क्यूं उसे शर्म ना आयी थी।


बेसुध सी, बेजान सी मैं पड़ी रही थी,

मैं तड़प रही थी बाबा, यूं तड़प रही थी।

वो क्रूड अमंगल वाकया अब यूं आंखों में बसता है,

भाई बन्धु हर शक्स में वो ही दानव अब दिखता है।


घाव ऐसे छोड़ कर, मेरी रूह को झकझोर दिया,

शरीर पर जो हैं, सो हैं, मुझे अन्दर तक तोड़ दिया।

कुछ दिन और मैंं पन्नों में सिमट कर रह जाऊंगी, पर

मैं भुला ना पाऊंगी बाबा, मैं भुला ना पाऊंगी।


केश के सिरे से अंगूठे तक खुद को छिपा लूंगी,

जी लूंगी मैं घुटकर घर को ही दुनिया बना लूंगी,

अपनी आवाज़ को अपने अंदर ही बाबा दबा लूंगी,

नहीं चाहिए ये अरमानों के पंखों को कटा लूंगी,


नज़र बचा के सबसे मैं वजूद अपना मिटा लूंगी,

ऐसी मौत रूपी ज़िन्दगी को हसकर गले लगा लूंगी,

बस इतना बता दो मुझे, क्या दोष था मेरा, कहां गलत रही मैं ?

कहां गलत रही मैं बाबा, कहां गलत रही मैं ?


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