अनुभव / भावना (गरीब की जिंदगी)
अनुभव / भावना (गरीब की जिंदगी)
कैसे बताऊं मैं तुमको,अपनी गरीबी की कहानी,
तड़के सुबह उठ जाता हूं,अपने परिवार की चिंता में,
कैसे दिन गुजरेंगे हमारे,रोज यही सोचता हूं मै,
आंगन में बैठकर रोज सुबह,मिट्टी के बर्तन बनाता हूं,
नए नए आकार देकर,उनको सजाता हूं मैं,
ना तन में कपड़े होते हैं,ना पास में रूपए,
धोती पहनकर सुबह ही मै बर्तन बनाने बैठ जाता हूं,
बाज़ार में ग्राहकों को चिंता में आस लगाए रहता हूं,
तब जाकर पांच सौ, छ सौ रुपए में परिवार का पेट पालता हूं,
नहीं है एसो आराम की ज़िन्दगी मेरी
खून पसीना एक कर मेहनत से परिवार को अपने पालता हूं,
कैसे ? बायां करू मै तुमको अपनी ज़िन्दगी,
ना जाने कब खुशियां दस्तक देंगी,
मुझ गरीब के जीवन में,
परिवार की खुशियों में ही अपनी खुशियां दूढ़ लेता हूं,
बस इतनी सी है,मुझ जैसे गरीब की ज़िन्दगी,
मुझ जैसे गरीब की ज़िन्दगी।