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Mansi Joshi

Crime Inspirational

4.5  

Mansi Joshi

Crime Inspirational

बेटी

बेटी

1 min
281


स्तब्ध हूं....

 नि: शब्द हूं 

ये कैसा बेटी दिवस है ?

जिस दिन एक बेटी को मुखाग्नि दी

जिसने अपने सम्मान और परिवार के मान के खातिर

जान अपनी गवां दी,


उस बेटी के लिए देखो आज हर कोई

भर भर कर स्टेटस लगा रहे हैं,

इसमें वो भी शामिल है जो बेटी का सम्मान नहीं करते

पर एक दिन के लिए दिखावा जरूर करते हैं 

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारों से,

अपना स्टेटस भरते हैं


हम बेटियां मोहताज नहीं हैं,

एक दिन के दिवस की जरूरत है बदलने की,

तो समाज की मानसिकता और कानून को

कुछ करना ही है तो बनाओ,

कठोर कानून को

जो भी करे बेटियों के साथ दुराचार

उसे करो जनता के हवाले,

या दो तत्काल फाँसी

 

फिर देखो नही होंगे कोई जघन्य अपराध

सोचेंगे सौ बार वो कोई अपराध करने से पहले

कापेगी रूह उन दरिंदो की,

फिर देखना कैसे समाज में होंगे बदलाव शुरू होगा

 एक नया अध्याय शुरू,

बेटी के समर्थन में,

बेटी के हक में,


नही तो इस समाज में हर एक साल 

एक नई अंकिता,

नए अपराध के साथ कुर्बान होगी,

फिर उमड़ेगा जन सैलाब,

न्याय के लिए, 

कुछ साक्ष्य दबाए जाएंगे 

कुछ दबाव में आकर पीछे हट जाएंगे,


धीरे धीरे दिन बीतेंगे 

फिर साल बीत जाएंगे उसे इंसाफ दिलाने में

फिर मामला ठंडा होता जाएगा,

फिर समाज भी सब भूल जाएगा 

धुंधली यादें होगी तो सिर्फ न्यूज़ पेपर में,

सोचो अगर......


जब बेटी महफूज ही नही होगी,

 तो क्या होगा ?

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अभियान से ही 

क्या समाज चल पाएगा ?


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