STORYMIRROR

Ragini Preet

Action Classics Crime

4.7  

Ragini Preet

Action Classics Crime

सच

सच

1 min
548



तार-तार मन, ज़ार-ज़ार है चुभन

आत्मा की चीख, जिस्म बेतरतीब

रक्त रक्त रक्त ये कौन था आसक्त!

किसके नख की शान, नोचा हुआ बदन

दांँत में फंँसा उघड़ा हुआ बदन ?

मूंँछ पर है ताव त्राहिमाम सुन

सर पे सजा ताज हाय! हाय!! सुन।


लग गई सभा, खुल गई जुबांँ

अपनी अपनी बात सबने बोल दी।

वस्त्र और संयम, स्त्री का अनुशासन

आधुनिकता वार सब और से प्रहार।

वो घाव रो रहे, बार बार रो रहे

कैसे हो मरम्मत कैसे करे हिम्मत !


हाज़िर है अदालत, हो रही खिदमत

हर एक लगा है धुन अपनी सुनाने।

आंँख पर पट्टी, हाथ तराजू

न्याय तौलने की बोली हुई शुरू।

इसकी गवाही, उसकी गवाही

साक्ष्य पर नज़र, न्याय पर पकड़

सब हुआ लेकिन वो अब भी खड़ी है

इंसाफ का अधिकार लेने को अड़ी है।


मजबूर अदालत, मजूबर बना न्याय

मजबूर प्रशासन, मजबूर समुदाय

हर बार की तरह इस बार भी विफल

पुरुषत्व की नकेल कसने में असफल !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action