जश्न
जश्न
मेरी धड़कन दास्ताँ मुझसे मेरी कहने लगी
धड़कनों की राग में हर रागिनी सजने लगी।
चख लिया मकरंद मैंने इक इश्क़ वाले फूल का
गुड़ की डलियांँ मुझे फीकी सी अब लगने लगी।
एक दिन गुजरी जो तितली सी मैं चाहत बाग से
मंज़िलें दिल को सभी उस ओर ही दिखने लगी।
कुछ स्याह थी कुछ दाग़ सी थी रोशनाई शाम सी
चूम कागज़ को सियाही ज़िंदगी लिखने लगी।
गर्द सी यह ज़िंदगी झोंके में उड़ती थी बिखर
बूंँद सावन की गिरी मैं फूल से सजने लगी।
ज़िंदगी में तभी से मेरे जश्न वाला दौर है
प्यार की रंगोलियांँ जब से हृदय बनने लगी।
रात और दिन एक सा राधा भी मैं मैं श्याम हूंँ
प्रेम के धागे से सपने रागिनी बुनने लगी।