STORYMIRROR

Ragini Preet

Romance Classics Fantasy

4  

Ragini Preet

Romance Classics Fantasy

जश्न

जश्न

1 min
245

मेरी धड़कन दास्ताँ मुझसे मेरी कहने लगी 

धड़कनों की राग में हर रागिनी सजने लगी। 


चख लिया मकरंद मैंने इक इश्क़ वाले फूल का 

गुड़ की डलियांँ मुझे फीकी सी अब लगने लगी। 


एक दिन गुजरी जो तितली सी मैं चाहत बाग से 

मंज़िलें दिल को सभी उस ओर ही दिखने लगी। 


कुछ स्याह थी कुछ दाग़ सी थी रोशनाई शाम सी 

चूम कागज़ को सियाही ज़िंदगी लिखने लगी। 


गर्द सी यह ज़िंदगी झोंके में उड़ती थी बिखर 

बूंँद सावन की गिरी मैं फूल से सजने लगी। 


ज़िंदगी में तभी से मेरे जश्न वाला दौर है 

प्यार की रंगोलियांँ जब से हृदय बनने लगी। 


रात और दिन एक सा राधा भी मैं मैं श्याम हूंँ 

प्रेम के धागे से सपने रागिनी बुनने लगी। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance