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Ragini Preet

Others

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Ragini Preet

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घूँघट

घूँघट

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घूँघट में सिमटा-सिमटा, 

एक चाँद दिखाई देता है

आसमान में छाने को, 

बेताब दिखायी देता है। 


पल्लू को हौले खिसका, 

जब दहलीज देखती है

तहें हटा कर बादल की, 

तब चाँद दिखाई देता है।


कभी-कभी कुछ झीना-झीना, 

अक़्स नजर तो आता है 

शीतल जल में मोहक जैसे, 

चित्र दिखाई देता है। 


कुछ अनकही कुछ अनसुनी व्यथा, 

आँचल से ढ़़क लेती है 

रीत पुरातन ढ़ोने को, 

मन विवश दिखाई देता है । 


चाँद नजर ना आये जब, 

वह रात अमावस होती है 

पूनम में उन्मुक्त हसीं, 

आकाश दिखाई देता है । 


परदे में है छिपी-छिपी, 

सपने की इक दुनिया जैसे 

अँगड़ाई लेने को इक मन, 

बेताब दिखाई देता है । 


बहुत समेटा है खुद को, 

अब चलो "रागिनी" मुक्त बनें

हो अपनी पहचान, 

इरादा ख़ास दिखाई देता है । 


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