बेटियां
बेटियां
खत्म हुए परियों के किस्से,
अब बेटियां राक्षसों के हिस्से..
ना आता अब कोई राजकुमार,
जो लें जाये नदिया के पार..
सपनो की दुनिया अब खो गई है
हर जगह बस दरिंदगी हो गई है
ना कपड़ो से ना हया से इनका वास्ता
बेशर्मी, बेहयाई, बदसलूकी इनका रास्ता
इंसान भीं उगलेगा इतना ज़हर
सांप ने भीं ना सोचा किसी पहर
नारी सम्मान की बस ये करते बातें
गलियों मे सबकी माँ को लें आते
ज़ब ना देंगी महिलाये जन्म इनके बच्चों को
शायद तब आ समझ इन अक्ल के कच्चो को
शायद इन्हें समझ तभी पड़ेगा
ज़ब वंश इनका आगे ना बढ़ेगा।