STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

भूख

भूख

1 min
35

सबको यहां कोई न कोई भूख है

सबको यहां कोई न कोई दुःख है

लोगो को भूखे रहने का दुख नहीं,

रोटी नहीं मिलने का भी दुख नहीं,


लोगो को दूसरी चीजों की भूख है

किसी को यहां पे तन की भूख है,

किसी को यहां पे अहम की भूख है

सबको यहां कोई न कोई भूख है


अपने गम से ज़्यादा आज ये मन,

पड़ोसी की ख़ुशी पर बहुत रोता है

आज पड़ोसी दुःखी हो ये भूख है

अपनी खुशी से खुश नहीं होते है


दूसरों के गम से हम खुश होते है

आज दूसरों को रुलाने की भूख है

आज अन्न कम,धन ज्यादा चाहिये

आज अन्न नही,पैसो की भूख है


सबको यहां कोई न कोई भूख है

हर शख्स ही आज यहां रोता है

हर रात को वो भूखा ही सोता है

सबकी भूख आज अलग-अलग है


सबकी भूख में बहुत बड़ी चूक है

यहां रोटी,कपड़ा,मकान की नही,

यहां लोभ,ईर्ष्या-द्वेष की भूख है

लोग को कैसे हम ज्यादा सताये,


आज लोगो को सताने की भूख है

आज अच्छाई की भूख कम है,

बुराई की आज ज्यादा भूख है

पर तू सदा याद रखना साखी,


भूख वो अच्छी है जो सच्ची है

सच की भूख में ही अमूल्य सुख है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy