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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

मन की वर्षा

मन की वर्षा

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आज पहली वर्षा हो रही है

हमारे तन को भिगो रही है

हर तरफ़ छाया हर्षोल्लास है

मन मयूर गा रहा मधुर राग है


आज मिट्टी गीली हो रही है

खुदा ने अपनी रहम दिखाई है

वर्षा से सबकी प्यास बुझाई है

पर इंसानो की बुरी हरकतों से,


वर्षा बड़ी शर्मिदा हो रही है

आज पहली वर्षा हो रही है

वर्षा का स्वभाव है,पानी सा

इंसान का स्वभाव पत्थर सा


ये पत्थर दिलो से टकराकर,

आज जोर-जोर से रो रही है

वर्षा से जिस्म तो गीला हुआ है,

परन्तु मन अभी सूखा हुआ है,


वर्षा जब तक हृदय में न होगी,

तब तक मानवता रोती रहेगी,

मन की वर्षा से ही,

धरती जन्नत से सुंदर हो रही है

आज पहली वर्षा हो रही है।


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