सब झुलस गया
सब झुलस गया
एक अंजनी, अपने,
रस्ते से गुजर रही थी
आने वाले हादसे से बेगानी
एक पहेली, जो आणखी थी
सरफेरा था वो इन्सान
ठीक नहीं थे उसके इरादे
कोई बात ना कहते ही
कुछ खामोश थे वादे
उस बेचारी पे उसने
चंद छीटें छिड़क दिये
चुप सी थी, होंठ थे सिये
पलभर में, आग ने जकड़ा
कुछ भी ना था,
ना किसी ने हाथ पकड़ा
कोई आगे ना आया उसे बचाने
चींख रही थी,
और लगी शोर मचाने
वो बेकदर भाग गया वहा से
ना जाने, क्यों और आया था कहा से
अपने तक़दीर से वो लड़े
ज़िंदगी की उम्मीद लिए, मौत से झगड़
ऐ भगवान, तू वह, मौजूद होता, काश
केसरियां लपटोंमें, वह बन गयी ज़िंदा लाश
धागा, खुशियों का उलझ गया
लगता है, सब झुलस गया।