सुबह कोरोना:शाम कोरोना
सुबह कोरोना:शाम कोरोना
वही सुबह है, वही शाम है और वही दुपहर है।
पर शक होता है क्या मेरा अपना वही शहर है।।
मौन साधते भवन दिख रहे टूट रही मानवता।
घर के अंदर बना रहा घर यह कैसा मंज़र है।।
सन्नाटा सड़कों पर पसरा छाया है इक डर- सा।
दूर हो रहा है सब कोई जिसका उस पे असर है।।
कैद हो गए पक्षी के सम,मानव पिजड़े से घर में।
झाँक रहे कोटर से सब, लाचारी से भरी नज़र है।।
कितने मरे, बचे हैं कितने और संदिग्ध हैं कितने।
कितने और गिरफ्त में इसके सबके पास खबर है।।
खुशियों पर अंकुश का ताला लगा है मेरे शहर में।
हे 'आज़ाद' दुष्ट कोरोना का हर तरफ कहर है।।
