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Ram Chandar Azad

Tragedy

4.5  

Ram Chandar Azad

Tragedy

कहें तो आखिर...

कहें तो आखिर...

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 कहें तो आखिर कहें ये किससे,
                  हमारी सुनता कहाँ कोई है।
सब अपनी अपनी ही हाँकते हैं,
                 हमारी सुनता कहाँ कोई है।।
 फिकर तो करते हैं पूरे दिल से,
                 इसीलिए तो झगड़ते पल पल।
वो अपनी हर पल सुनाते रहते,
                 हमारी सुनता कहाँ कोई है।।
 निगाहें मिलकर भी मिल सकी ना,
                 मगर निगाहों ने ये कहा है।
कहें न तुमसे कहें ये किससे,
                हमारी सुनता कहाँ कोई है।। 
वफाओं का ये शहर गज़ब है,
                सभी हैं मशगूल अपने ही में।
ये चर्चे आखिर करें तो किससे,
                हमारी सुनता कहाँ कोई है।।
नहीं शिकायत जमाने से है,
               बिना तुम्हारे 'आज़ाद' कैसे।
नहीं सुनो फिर सुनाएं किससे,
               हमारी सुनता कहाँ कोई है।। 


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