अंधेरा-उजाला
अंधेरा-उजाला
पथिक नहीं रुकना है तुमको,
कितना हो घनघोर अंधेरा।
सूर्योदय होना निश्चित है,
छँट जाएगा तम का डेरा।।
विचलित हुए बिना जो चलता,
मंज़िल वही प्राप्त करता है।
ज्ञान पुंज के स्वर्णिम लौ से,
तम का नाश वही करता है।।
आशाओं की गठरी लेकर,
कर्म डगर पर चलिए राही।
पूरी होगी सकल तमन्ना,
यदि तुमने है मन से चाही।।
अंधकार का अंत एक दिन,
निश्चय होकर ही रहता है।
और उजाले की सत्ता को,
कोई रोक नहीं सकता है।।
जब तक है अज्ञान तिमिर मन,
भोर उजाला कैसे होगा?
तम-अज्ञान मिटाने खातिर,
ज्ञान दीप बनना ही होगा।।
