थोड़ा पीछे चलते है
थोड़ा पीछे चलते है
थोड़ा पीछे चलते हैं
जीने का ढंग थोड़ा बदलते हैं
आ चलें एक सफर पे
कुछ जो छूट गया पीछे ...
दो पल उसके साथ भी बिता के आते हैं
चाय पे बुलाते हैं
कुछ दोस्तों को
आओ एक महफ़िल सजाते हैं
कुछ बातें
कुछ यादें साझा करते हैं
किसी अजनबी में कोई अपना तलाशते हैं
थोड़ा कम कहते हैं
थोड़ा ज्यादा सुनते हैं
चल ना
थोड़ा पीछे चलते हैं
रुकते हैंथोड़ा
थोड़ा ठहरते हैं
वक़्त से आगे नहीं
वक़्त के साथ चलते हैं
थाम के हाथ किसी अपने का
चल ना
आज एक सैर पे निकालते हैं
दिल की कहते हैं
दिल से सुनते हैं
चल ना
आज थोड़ा पीछे चलते हैं
बेफिक्र से इस शहर में
चल ना
थोड़ी अपनी थोड़ी उसकी फ़िक्र करते हैं
बेवफाई , दिल टूटना जहाँ हो गयी आम सी बात हैं
चल ना
आज वहाँ मोहब्बत का परचम फैलाते हैं
किसी के लिए दुआ करते हैं
किसी की दुआ का हिस्सा बनते हैं
चल ना
आज थोड़ा पीछे चलते हैं।
