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himani goel

Crime Inspirational

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himani goel

Crime Inspirational

अब डर नहीं

अब डर नहीं

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बस अब डर नहीं

कह दू जो कहना चाहूं मैं

अब चुप करा दे ..

इतना कोई मुझपे हावी नहीं

अब डर नहीं


साड़ी लपेटु मैं

चाहे पहनू दो कपडे ही

मेरे लिबास में मेरा चरित्र देखले

अब उन आँखों से मुझे फ़र्क़ पढ़ता नहीं

अब डर नहीं


मेरी कोख है गुलज़ार या नहीं

मैं देवकी नहीं यशोदा सही

मुझे बाँझ कहकर सताये कोई

अब यहाँ किसी में इतनी ताक़त नहीं

अब डर नहीं


स्त्रीलिंग पुर्लिंग के भेद में

बंध कमरे में झुलस जाओ

ऐसी कोई माचिस अब बची नहीं

अब डर नहीं


अजनबी से रहूँ दुर

घर में ही चुर हो रहा मेरा ग़ुरूर

रिश्ते मोढ़ो

चुपी तोड़ो

चिल्लाओ मैं बताओ मैं

कैसे कर रहा मुझे कोई मजबूर

अब डर नहीं


बिना पँख के उड़ जाओ मैं

हाँ बस कुछ कर जाओ मैं

कैद कर ले मेरी सोच को

अब वो पिंजरा बचा नहीं

अब डर नहीं।


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