केरल की गर्भवती हथिनी
केरल की गर्भवती हथिनी
किस हद तक गिर गया इंसान
इंसान के अंदर कि इंसानियत तक मिट गयी
कैसे एक बेजुबा माँ कि हत्या कर दी
रूह नहीं कापी इनकी कि जानवर से बद्दतर हो गया इंसान
अन्नानास में फटाका खिला दिया हथनी को
माँ तो बेचारी पल रहे बच्चे कि भूख मिटाने निकली थी
क्या उसकी यही गलती थी इंसान पर भरोसा कर लिया
माँ तो अपना फर्ज निभा रही थी
पर इंसान ने कौन सा फर्ज निभाया
एक माँ सजा रही थी सपने माँ बनने के लिए
भूख की आग थी उसमें, उसको ही आग लगा दिया
बच्चा भी बोल पड़ा माँ से तूने मेरे लिए अपनी जान गवा दी माँ
मुझे इंसाफ चाहिए माँ तेरे लिए क्या मैं तेरा गुनहगार हो गया
जो तू ये इंसानों कि बस्ती में चली गयी
तूने तो किसी को नुकसान भी नहीं पहुँचाया
फिर भी तुझे जान गवानी पड़ी मिला
मुझे इंसाफ चाहिए माँ इन दरिन्दो को मौत कि सजा देना
एक जानवर की मौत नहीं हुई
मानव ने खुद को मारा है
इस धरती पर जीतना हक इंसान का है
उतना ही जानवर का है।
भगवान माँ और बच्चे की आत्मा को शांति दे।