तन्हाई
तन्हाई
मेरी तन्हाई थी साथ मेरे
तब न कोई पास मेरे।
रोती सिसकती
फिर दूजे पल मनाया करती।
मेरी तन्हाई थी साथ मेरे
तब न था कोई साथ मेरे।
रोती रहती थी जाने क्यूं पागलों की तरह
पता था कोई मनाने नहीं आएगा।
मेरी तन्हाई थी साथ मेरे
तब न था कोई साथ मेरे।
मेरी किताबें मेरा सहारा बनी
फिर लगा जैसे वो भी रूठते जा रही दूर कहीं मुझसे।
मेरी तन्हाई थी साथ मेरे
तब न था कोई साथ मेरे।
फिर मेरी तन्हाई बन गई ताकत मेरी
मेरी तन्हाई ने कहा चुपके से कानों में मेरे
कि किताबों को मत रूठने दे मना ले उन्हें कही पर।
मैंने सुन ली तन्हाई की बात
पकड़ लिया किताबों का साथ
जिसने नहीं छोड़ा कभी मेरा हाथ।
मेरी तन्हाई थी मेरे साथ
जब न था कोई मेरे साथ।
