STORYMIRROR

Sajida Akram

Abstract

4  

Sajida Akram

Abstract

यकीन

यकीन

1 min
23.2K

दरख़्तों ने दी है परिंदों, 

को अपने आग़ोश में आसरा, 

दरख़्तों ने दी है जमीं को थमा, 

रहने की ताक़त, दरख़्तों ने दी है, 

फूलों की बहार, फलों की सौगात, 


दरख़्तों ने दी है मौजों, दरिया

के सैलाब को थम जाने की सीख, 

दरख़्त ही रोक लेता है, दरियाओं, 

और मौजों से बहती हमारी जमीं की


ऊपजाऊ मिट्टी को, दरख़्तों को हे यकीं

दरख़्तों में जब होता है अलविदा का, 

वक़्त सूख कर भी वो दरिया के पानी से, 

सींच कर फिर दे जाता है।


नन्हीं कोपल की सौगात, 

हे यकीं दरख़्तों को ज़मीं से, 

अपनी हस्ती को बचाए रखने, 

का यकीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract