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Shyama Sharma Nag

Abstract

4.5  

Shyama Sharma Nag

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कोई तो रास्ता ज़रूर निकलेगा

कोई तो रास्ता ज़रूर निकलेगा

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कोई तो रास्ता ज़रूर निकलेगा

 म॑ज़िलें दूर हैं तो क्या हुआ 

रास्ते बामुश्किल हैं तो क्या हुआ


हवाओं के रुख न बदले तो क्या हुआ

उगता सूरज अन्धेरों को चीरता दिखेगा

कोई तो रास्ता ज़रूर निकलेगा


मत कोस उस दर्द की अन्धेर- भरी रात को

जिस्म औ दिल पर पड़े उस आघात को

अक्स उनके ज़ेहन से तू मिटाने की बात कर


न झंझोड़ दिलो -दिमाग को बस उम्मीद की बात कर

इस जहां के शोर में भी भाव तेरा निखरेगा

कोई तो रास्ता ज़रूर निकलेगा ।


प्रतिशोध से न बन पाया न कभी कोई महान

फ़िदा उसी पर हुई ज़िन्दगी खुदा रहा उसपर मेहरबाँ

फ़ना होकर न किया कभी मानवता का प्रतिकार  


न छेड़े कभी किसी की संवेदनाओं के तार​

सोच मत इस भँवर से तू अवश्य निकलेगा

कोई तो रास्ता ज़रूर निकलेगा।


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