चौदह सितम्बर
चौदह सितम्बर
संविधान में फेर-बदल हुआ है बार-बार,
पर भारत इंडिया ही रहा हर बार।
भारतीयता पर इंडिया का मुलम्मा चढ़ा है ज़बरदस्त,
संविधान की धाराएँ बदलते-बदलते हो गए पस्त।
कुछ लोगों की नसीहत - न थोपो हम पर राजभाषा,
नहीं तो बात-बात पर हो जाएगा हिंसा का तमाशा।
निज भाषा को भूल करें राष्ट्र -एकता की बात,
इससे बड़ा नहीं है कोई आघात।
हर तथ्य को अंग्रेज़ियत की कसौटी पर कसा जाता है,
तब जाकर असलियत का जामा पहनाया जाता है।
तन ग़ुलाम, मन ग़ुलाम, अपनी संस्कृति ग़ुलाम,
इस तरह पा सकेंगे क्या हम मुक़ाम।
धरती से उखड़कर आकाश को पाने की ललक,
मयस्सर नहीं होगी अपनी सभ्यता की झलक।
मैं मुत्तमयन हूँ कि आएगी सुबह कभी न कभी,
दीदार होगा तेरे रूप का तभी,
पराधीनता का मुलम्मा जब उतर जाएगा,
इंडिया तब भारत कहलाएगा।
इंडिया तब भारत कहलाएगा।