आओ कुछ ऐसा कर दिखाएॅं...
आओ कुछ ऐसा कर दिखाएॅं...
आओ कुछ ऐसा कर दिखाएँ, इक नया सपना सजाएँ।
जहाँ से चलें, जहाँ तक चलें, शिद्दत से बढ़ें, शिद्दत से चढ़ें,
ग़र काफि़ला ख़्वाबों का है, हथियार जंग को बनाएँ,
इक नया सपना सजाएँ।
परिस्थितियाँ हो अनुकूल तो मजा़ ही क्या,
ज़न्नत हो सब, फिर वजह ही क्या,
ग़र मंज़िलें हैं दूर तो क्या, फासलों को अब मिटाएँ,
रावण नहीं, राम को लाएँ, इक नया सपना सजाएँ।
समय की चुनौती पर न हो हैरान, अपने किए पर न हो पश्यमाँ,
ग़र रात है काली तो न घबराएँ, उजाले सुबह के भी ढूँढ लाएँ,
इक नया भारत बनाएँ, आओ कुछ ऐसा कर दिखाएँ,
इक नया सपना सजाएँ
तमन्नाओं की कश्मकश में, ग़र समन्दर के भँवर में,
ढूँढने मोती को, बस किनारे तक न जाएँ,
मुद्दा युगों का नहीं यहाँ पर, अपना हर पल बनाएँ,
इक नया सपना सजाएँ।
मुद्दतें हो गईं यहाँ पर, सपने सँजोते सँजोते,
झँझावातों के भँवर में, न रह पर के भरोसे,
जज़्बा है तो कर गुज़र...
इक आग-सा, इक शोला-सा, दे हवा उसको तू बढ़ कर
तोड़ तारे आसमाँ के, हम ज़मीं पर ले ही आएँ।
आओ कुछ ऐसा कर दिखाएँ, इक नया भारत बनाएँ।