सुबह
सुबह
वह सूरज की अंतिम किरण-सा,
जल कर भी जादू चला गया,
लोग करते हैं बहारों की बात,
हमें तो पतझर भी भला लगा।
इक दिल्लगी का तीर छोड़ के
बना लिया तुमने आशियाँ
हम करते रहे बहारों का इंतज़ार
मन में लिए तुम्हें बाग़बाँ।
संजोते रहे सपने तुम्हारे लिए
मन की कहकशाँ सुन कर
काश उठाते लुत्फ़ हम भी,
सपनों का जाल बुन कर।
भरोसा उठ गया वफ़ा से
अब इस पर सोचना क्या
चलो ग़ुल गुलिस्ताँ बहारों से
आग़ाज़ करें अपनी सुबह का !