अनकहे लम्हे..........
अनकहे लम्हे..........
त्राहिगत रात है
दिन जैसे आघात है
खोया-बचा साथ है
दहशतों का दौर है
हर ओर शोर है
घटा घनघोर है
ज़िंदगी का सूरज
छुपा है जैसे चोर है
फिर भी -
दिशा-दिशा हुंकार है
उम्मीदों की झंकार है
दिल की यह पुकार है
अँधेरा छँटेगा
कोहरा हटेगा
सूरज चमकेगा
धूप खिलेगी
उजली सुबह फिर होगी
ज़िंदगी पहले से ज़्यादा हसीन होगी।