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Bhim Bharat Bhushan

Abstract

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Bhim Bharat Bhushan

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स्मृति के दंश....

स्मृति के दंश....

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लम्बी,सपाट,

सूनी सड़कों पर

दौड़ती हुई कहानी

समय के साथ

हो गई पुरानी

वो जब कॉलेज में

प्रवेश पाया


वो सब जिन्होंने

उंगली पकड़ चलाया

वो अपने

जिनके बीच

मैं हो गया पराया

वो पराए


जिन्होंने मुझे

सहजता से अपनाया

वो प्रतिदिन की भाग दौड़

और बसों का रेंगते हुए

गांवों की गलियों से गुजरना

वो संभलते हुए गिरना


और गिरते हुए संभलना

वो आधुनिक गुरुकुल में,

कुलगुरू का योगदान

वो शिक्षा में फिर से

भिक्षा का प्रावधान


वो बहाने

जिन्हें जी भर बताना

वो बातें

जिन्हें चुपके सुनाना

वो स्वागत,


वो वंदन,

वो पीड़ा,

वो क्रंदन

वो उपलब्धियों से

जूझता जीवन

कुछ मीठा, सुखद,


कुछ तीखा सा

आपसी व्यवहार

वो अपनों परायों से

भरा एक परिवार

वो शिक्षित समाज का

चलता हुआ वंश

न जाने कहां हैं

अब वो


सुंदर सपनों के अंश,

न जाने कहां हैं

अब वो

सुंदर से काल हंस

विस्मृत हो गए सब,

विस्मृत हो गए सब

शेष रह गए

स्मृतियों के दंश।


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