डिफरेंट
डिफरेंट
मेरे एक बेरोज़गार मित्र ने,
मेरी पार्टनरशिप में ,
बिजनेस के परपज से ,
कनॉट प्लेस में दुकान खोली ।
जगह-जगह लिखवाया विज्ञापन
और लाउड स्पीकर से लगवाई बोली ...
"हमारे यहाँ बिकते है,
हर प्रकार के किफायती,
उम्दा और फैंसी दूल्हे ,
जो दिन भर करते हैं ,
घरेलू काम और शाम को
फूंकते हैं चूल्हे ,
यदि किसी को अपना
मन पसंद दुल्हा चाहिए ,
तो हमारी दुकान पर
तशरीफ़ लाइये ।"
हमारा आपसे ,
क्विक सर्विस का अनुबंध है ।
हमारे यहाँ शाहरुख, सलमान
और सचिन छाप दूल्हों का ,
विशेष प्रबंध है।
हमारे शो रूम में,
मुख्य वैरायटी में ,
पशु,पक्षी जानवर,नेता
और अभिनेता हैं ।
हम ही एक मात्र दूल्हों के
थोक व फुटकर विक्रेता हैं ।
मित्र ने हमें भी फ्रेंड शिप व
पार्टनरशिप की भेंट चढ़ा दिया ।
और एक पहाड़ी पार्टी का पार्टनर
बना दिया ।
हुआ यूं कि एक पहाड़ी युवती को
जरूरत थी उल्लू छाप दूल्हे की
मित्र ने हमें अपनी
बेबाक़ निगाहों से चेक किया और
मेरी बिना सुने ही
मुझे कुल्लू के लिए पैक किया ।
वैसे तो बहुत मलाल था ,
पर धंधे का सवाल था ।
इसलिए बातों-बातों में,
आदमी से उल्लू में बिकवाया ।
और दिल्ली से कुल्लू में फिकवाया ।
कमबख्त ने इस शहादत में बस
इतना साथ निभाया था ।
अपनी नम आंखों से ,
हमें टैक्सी तक छोड़ने आया था ।
लेकिन किस्मत ने हमें जोरदार
तरीक़े से झटक दिया ।
उस पहाड़ी युवती ने चौबीस घंटे में
रिजेक्ट कर हमें दुकान के
काउन्टर पर पटक दिया ।
आपने ये हमारे साथ क्या किया ।
हमने उल्लू बताकर सभ्य आदमी
थमा दिया ।
हमें नही चाहिए ये पीस ,
ये तो बिल्कुल डिफरेंट है ।
जब भी मुँह खोलता है,
सभ्य आदमी की जुबान बोलता है।
ना हँसता है, ना रोता है,
दिन भर आंखे खोल जागता है।
और रात में डबल एक्शन
खर्राटों के साथ सोता है।
हम ऐसे ही सही हैं
वापस रखो ,हमें जरूरत नही है
मित्र बोला
कैसा जमाना है, अजीब जहान है,
आदमी से ज्यादा उल्लू महान है।
मुझे अधमरी हालत में
पैकेट से बाहर निकाला
और तभी दुकान को लगाया ताला ।
तब से वो और मैं बेकार हैं ,
और फिर से बेरोजगार हैं ।