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Dinesh Paliwal

Children Stories Comedy

4.5  

Dinesh Paliwal

Children Stories Comedy

।। मुहावरे।।

।। मुहावरे।।

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साँच को आंच नहीं आती,

और झूठ के पांव नहीं होते,

कानून भी तो अंधा होता है,

पर इसके लंबे हाथ बड़े होते।।

जब दीपक तले अंधेरा हो,

और सूरज को दिया दिखाना हो,

यूं बढ़ चढ़ कर तुम मत बोलो,

ज्यों टिल का ताड़ बनाना हो।।

न जो आंख तरेरी ये होती,

तो आंख न मेरी नम होती,

गर आंखों में शर्म रही होती,

तो झुकी पलक हरदम होती।।

जिसकी लाठी उसकी भैंस यहां,

क्यों भैंस के आगे बीन बजाऊं,

जब खुद हाथ काट दिए अपने,

तो अब कैसे अपने हाथ फैलाऊँ।।

वो जिनके घर शीशे के हों ,

दूसरे के घर पत्थर मारे क्यों,

जब मन के हारे है हार यहां,

फिर रहें तिनके के सहारे क्यों।।

जब सांप भी हमने मारा था ,

और लाठी भी ना टूटी थी,

अब ऊंट पे बैठ के कुत्ता काटे,

क्यों किस्मत हमसे रूठी थी।।

माना मैं सावन का अंधा था,

सब दिखता था मुझको हरा हरा,

अब आंख का अंधा नाम नैनसुख,

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रह रह अपनी परछाई से डरा।।

अब इधर उधर की बात नहीं,

हैं सब मतलब के यार यहां,

ये प्यार तो अंधा होता हैं,

सब रिश्ते हैं व्यापार यहां।।

यहां बूंद बूंद से बनता सागर,

और गागर में भी तो सागर हैं,

हैं सब दीवारों के कान यहां,

सबके रहस्य यहां उजागर हैं।।

हारे को हरिनाम यहां है,

जो जीता हैं वही सिकंदर,

अदरक का वो स्वाद न जाने,

बस लिए उस्तरा बैठा बंदर।।

है अंधेर नगरी चौपट राजा,

टका सेर भाजी टका सेर खाजा,

सब अंधों के हाथ है लगी बटेर,

तू भी खेल में खुल कर आजा।।

बहुत हुआ शब्दों का हेर फेर,

बात मुद्दे की अब जरूरी हैं,

बातें बनाना कोई सीखे हम से,

बात के बतंगड से अपनी दूरी है।।


इस प्रयोग में मैंने हर पंक्ति में किसी मुहावरे का उपयोग कर अपनी बात को आगे बढ़ाया है। आशा करता हूँ कि इस प्रयोग में कुछ हद तक सफल रहा हूँगा, आगे भी आप का स्नेह रहा तो और ऐसे प्रयोग होंगे।।



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