STORYMIRROR

दयाल शरण

Abstract

4  

दयाल शरण

Abstract

उसूल

उसूल

1 min
23.7K

मेरे उसूल मुझी से शुरू हो कर,

मुझी पे ख़त्म भी हो जाया करो।

जमाने भर में घूम-घूम कर 

नया सियापा ना मचाया करो।


दर्द लेकर उसे ज़रा महसूस तो कर सकूँ

इस तरहा मुझको पुरसुकूँ कर जाया करो।

बेरफल में गुठलियों सा ज़ुबाँ पर भले खटके

जाते-जाते कोई नया स्वाद तो दे जाया करो।


खीझना, झींकना, ताने देते रहना मुझको,

इनसे ऊबो तो मुझे समझने आ जाया करो।

फिर ना कहना कि मैंने मौका नहीं दिया तुमको

जी भर के सता लो पर जब मैं हंस दूँ मुस्कुराया करो।


गीली मिट्टी को चाहो जैसे जिस्म में ढालो

सख्त अवधारणा को कभी मोंम सा पिघलाया करो।

मेरी खुशियां मेरे उसूल के दायरे में खुश है

अपने दायरे से निकल कभी मेरे दायरे में आ जाये करो।


बेर फल की गुठलियों सा ज़ुबाँ पर भले खटके

जाते-जाते कोई नया स्वाद तो दे जाया करो।

मेरी खुशियां मेरे उसूल के दायरे में खुश है

अपने दायरे से निकल कभी मेरे दायरे में आ जाये करो



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract