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Aditya Srivastav

Abstract

4.2  

Aditya Srivastav

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कोरोना काल और मानव

कोरोना काल और मानव

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मिलते थे गले गर्मजोशी से जो

आज कतराते हैं हाथ मिलाने से

दिखता नहीं है आँखों से पर

फैले है गले लगाने से,


पसरा सन्नाटा सड़कों पर

बंद वाहनों के करकस हॉर्न क्यूँ हैं !

क्यों पड़ा है मानव घर पर में

ख़ाली सड़कें शमशान क्यूँ है ?


धमकाते थे परमाणु से जो

डरके पड़े हैं सूक्ष्म विषाणु से

है पृथ्वी आज सूनसान पड़ी,

क्या चीन के काले जादु से ?


विकास की बंदरबांट में इस

अर्थव्यवस्था में आई ढलान क्यूँ है !

बैठे थे सिंहासन पे विश्वपटल के

वो मोदी-ट्रम्प परेशान क्यूँ हैं ?


लगता था आएंगे अब गरीब के दिन सुनकर

"सबका साथ सबका विकास" के नारों को

उड़ कर आ गए प्रवासी बाबू 

चलना पैदल ही पड़ा बेचारों को,

महामारी से तो संक्रमित न था वो


फिर गई मजदूर की जान क्यूँ है !

भूखे ही पेट चल दिया मुसाफ़िर

मूकदर्शक आलाकमान क्यूँ है!?


है चमगादड़ का किया धरा सब

ख़तरा है पर भेड़िये गिद्धों से

इनकी करतूतों के आगे हैं नतमस्तक 

राक्षस दैत्य पौराणिक किस्सों के

हैवानियत हैवानों से कम है क्या


नाहक़ ही शैतान बदनाम क्यूँ है !

षणयँत्र रचा जिस मौलाना ने 

वो जयचंद उन्मुक्त फ़रार क्यूँ है ?


अब हर दिन तो है छुट्टी का दिन

फिर क्यों नहीं शराब पे चखना होता,

नहीं सजती क्यों महफ़िल यारों की

जब घर ही पे तो है रहना होता


हवा तो आज कल साफ है ना 

फ़िर चेहरे पे बांधे रुमाल क्यूँ है !

अपनी ही करनी पर हे कलयुगी मानव

आख़िर तू इतना हैरान क्यूँ है।


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