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Sachhidanand Maurya

Abstract

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Sachhidanand Maurya

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प्रदूषण पे लगाम

प्रदूषण पे लगाम

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प्रदूषण पे लगाम का

अब महत्व समझ में आता है,

जब दो सौ किलोमीटर से भी

खड़ा हिमालय दिख जाता है।


कल्पना करिए जब धरती पे

जीवन आया होगा,

स्वच्छ हवा के झोकों ने

कितना आनन्द कराया होगा।


हमने डाल दी धरा पे

प्रदूषण की मोटी चादर

रोती हैं नदियाँ,

अब रोते हैं सागर।


जब चिमनी से निकलता है

काला धुआं,

सिसकतें हैं फेफड़े,

सिसकती है हवा।


जब कारखाने का शोर

छाता है चारो ओर,

पर्दे दुखते हैं कानो के

भागता है कहीं और।


जब सीवर का गंदा पानी

नदियों मेंं जाता है,

नदियाँ रूप बदल लेती हैं,

बर्फ काला हो जाता है।


ज्यादा अन्न की चाह मेंं

धरती को भी नहीं बख़्शा तुमने,

अंधाधुंध पेड़ काटकर,

बदल डाला नक्शा तुमने।


अब तो समझ आया होगा,

प्रदूषण क्या होता है,

कैसे धरती दुःख सहती है,

कैसे पेड़ रोता है।


जब भौतिकता को त्याग दोगे

प्रकृति की शरण जाओगे,

दूध,जल,हवा,अन्न, सब शुद्ध

समुचित पोषण पाओगे।



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