प्रेम का गुरुत्व
प्रेम का गुरुत्व
आ ना प्रेम, तनिक फिर से
बो दूं तुझे इस बंजर शहर में
थोड़ी नमी दुखों की मेरी और
थोड़ी मरती हुई, इस सभ्यता के
बचे अवशेषों के ढ़ेर पर
समाज के इस शिथिल होती सोच पर
उग आएंगी थोड़ी सी स्त्रीत्व
उधार ले लेंगे थोड़ी सी मातृत्व
रखकर गिरवी अपना मौन और अस्तित्व
बिखेर देंगे पुनः, चहुओर प्रेम का गुरुत्व।
