तिश्नगी
तिश्नगी
आब-ए-चश्म से मिटती नहीं मेरी तिश्नगी,
रोज जश्न मनाती है,जख्मों से भरी ये जिंदगी।
ये तलब नहीं,असर है एहसास-ए-तिश्नगी का,
एक मुसलसल सी जुस्तजू है,तेरी आशिकी का।
मुलाकातों से न सही,चंद लफ्ज़ों से ये प्यास बुझा दे,
बहुत रोया हूँ गमों में,थोड़ा खुशी में भी रुला दे।
खलिश इतनी है मन में,कि रूह भी तुझसे खफा है,
पर मजबूरी है मेरी,तेरी ज़ाजिब मुस्कान ही इसकी दवा है।
चंद दिनों की बात नहीं,पूरी जिंदगी का है किस्सा,
होगा हिसाब मेरी तिश्नगी का भी,इन अश्क़ों में तेरा ही है हिस्सा।